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अंजुमन

अंजुमन

मुश्ताक़ है नज़र तेरे अंजुमन में आज,

बेक़रार दिल को तेरी आरज़ू भी है ,

कौन चाहता है कि शब यूँ ढले.

इंतेज़ार में शब-ए-महताब है 

-ममता