Skip to content Skip to sidebar Skip to footer

ख़ामोशी की दस्तक़

आज दी दस्तक़

फिर उसने

आख़िर पूरे साल में

कांधे पे इक गर्म शॉल

और आँखों में

इक ख़ामोशी….

पूछ लिया दरवाज़े पर ही

अनगिनत सवाल

कहा मैंने

अब आ भी जाओ

थोड़ा ठहरो

बैठ भी जाओ

कुछ तो अपनी

थकन उतारो

झाड़ दो उन्हें

अपने कांधों से

बर्फ के स्याह सफेदी को….

जैसे झाड़े उसने अपने

बर्फीले से शॉल को 

छनछन करके बिखर गए

कल के कुछ ख़्वाब से

जिसे समेटा था आँखों में

पिछले मौसम के बहार ने 

– © ममता शर्मा