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इल्तिजा


बात लबों पे जो आज आई है
उसे तो कहने दो
पर पास न आओ कुछ दूरी
तो दरमियान रहने दो
हमने छेड़ी जो ग़ज़ल
तो तुम्हे सुनना होगा
गर बिखरे अश्कों के फूल
तो उन्हें चुनना होगा
छेड़ो कोई राग और
तरन्नुम को अब बहने दो
आओ बैठो करीब और जज़्बों
को और सुलगने दो
कहो न कुछ भी
न मुझे कुछ भी कहने दो
ठहर जाओ आँखों में
बस पलके बंद करने दो
जल गई जो शमा
तो रौशन होती है
वर्ना ख़ाक की क्या
ख़ाक अहमियत होती है?
© ममता शर्मा