Skip to content Skip to sidebar Skip to footer

ख़ुशी

आधी रात की ख़ुमारी

रेलवे स्टेशन की

अजब सी ख़ुशबू

आती जाती ट्रेनें

और गूंजती

उनकी आवाज़ें

गुलाबी सी ठंड

और इक इंतज़ार

सेलफ़ोन की

बैटरी का रूठना

उस पल न समझ में आई

मजबूरन की हुई

प्लेटफार्म पे चहलकदमियां

मिलते बिछड़ते लोग

और उसी भीड़ में कुछ ढूंढती

मेरी आँखे

इक किस्से की तलाश

चाय का स्टॉल

मिट्टी के सोंधे से कप की ख़ुशबू

चाय की चुस्कियां

अचानक दिखी

इक मोहतरमा

झुकी झुकी आँखें

उलझी उलझी सी साँसे

दिल चाहा पुकारूँ

कौन हो तुम

क्या नाम है तेरा

ऐसा सोचा ही था कि

अचानक उठाई उसने निगाहें

देखा मुझे इसतरह

कि वख़्त ठहर गया हो जैसे

बता दिया उसने

आँखों की ज़ुबाँ से

नाम था ‘ख़ुशी’

जो उस पल में मुझे मिली

– ©ममता