ऐ ज़िन्दगी कभी कभी मिसरे पे जां यूँ अटके ज़िन्दगी ऐसे गीत तू क्यों गा रही है तेरे इशारे कुछ समझ ना आये ऐ ज़िन्दगी तू मुझे क्या सिखा रही है राह में इक भरम बिखेर के खलिश-ए-तस्सुवर क्यों करा रही है सबक़ के पन्ने यूँ जुड़ते जाएं शायद ये मेहरबानी तू दिखा रही है…