आज दी दस्तक़ फिर उसने आख़िर पूरे साल में कांधे पे इक गर्म शॉल और आँखों में इक ख़ामोशी…. पूछ लिया दरवाज़े पर ही अनगिनत सवाल कहा मैंने अब आ भी जाओ थोड़ा ठहरो बैठ भी जाओ कुछ तो अपनी थकन उतारो झाड़ दो उन्हें अपने कांधों से बर्फ के स्याह सफेदी को…. जैसे झाड़े उसने अपने…