ख़ामख़ाह पिछले पहर जो बंधने लगी थी एहसासों की डोरी तोड़े नहीं टूटती थी ना जाने क्यों, नश्तर लगा दिया आज ख़ुद ही मैंने…. दूर चली मैं तुझसे बहुत दूर, फिर ना मिलने की उम्मीद में, कुछ ख्वाबों की पंखुड़ियां समेटे थी हथेलियों में कभी मैंने उड़ा दिया इक-इक कर के खुले आसमान में, कल…